भिलाई। माइलस्टोन अकेडमी में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सेलीब्रेशन हुआ। इस अवसर पर अकेडमी में एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में अलग-अलग फील्ड से महिलाओं को आमंत्रित किया गया। वर्चुअल मंच पर आयोजित इस कार्यक्रम में 'महिलाओं के लिए बेहतर दुनिया किस प्रकार बनाई जाए' विषय पर चर्चा हुई। साथ की महिलाओं के अधिकारों पर पैनल डिस्कशन भी हुआ।श्रीमती शुभम शुक्ला के मॉडरेशन में आयोजित इस वेबिनार में प्रतिभागियों ने कहा कि हमेशा महिलाएं ही त्याग क्यों करें। उसे भी अपना जीवन जीने और अपने सपनों को पूरा करने का हक है। महिलाएं हमेशा रूढ़ीवादी परंपराओं को क्यों निभाएं? वे भी खाना बनाने से लेकर जिम जाने तक सब कर सकती हैं।वेबिनार में शामिल एक अन्य प्रतिभागी ने कहा कि केवल बहू ही सास-ससुर की सेवा क्यों करे। पूरा घर भी तो इस जिम्मेदारी को अपनाकर पूरी ईमानदारी से साथ निभा सकता है। महिलाओं को भी समानता का अधिकार है। वह भी अपने पति की तरह अपने माता-पिता की सेवा करने का हक रखती हैं।वेबिनार में शामिल प्रतिभागी ने कहा कि हमेशा औलाद के रूप में लड़का ही क्यों चाहिए? लड़कियां भी माता-पिता का सहारा बन सकती हैं। आज वे और उनकी बहनें अपने माता-पिता की जिम्मेदारियां उठाने के साथ-साथ उनकी इच्छाएं भी पूरी कर रही हैं।लड़कियों की सुरक्षा को लेकर जो डर है, वह हम उन पर हावी ना होने दें। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होकर पूरे दृढ़ विश्वास के साथ आगे बढ़ने में उनकी मदद करें। अगर दोनों नौकरी कर रहे हैं तो महिलाएं ही घर का काम क्यों करें? बेटा अपनी मां की तरह ही अपनी बीवी की बात क्यों ना माने?इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए मनु सर ने कहा कि आगे बढ़ने के लिए महिलाओं के रास्ते में बहुत सी जिम्मेदारियां हैं जबकि पुरुषों का रास्ता साफ है। क्यों ना दोनों ही आधी-आधी जिम्मेदारियां उठा लें। सफलता दोनों ही पाएं। इस वेबिनार में कई पुरुष सदस्य भी शामिल हुए और अपनी बात रखी।हमारे आसपास ही है महिला सशक्तिकरणवेबिनार के अंत में माइलस्टोन अकेडमी की डायरेक्टर डॉ. ममता शुक्ला ने कहा की हम जिस नारी सशक्तिकरण को ढूंढ रहे हैं, वह तो हमारे आसपास ही है। बस जरूरत है उसे पहचानने की। हम अपनी क्षमता को स्वयं पहचान कर सशक्त हो सकते हैं। उन्होंने इन सभी मुद्दों पर अपनी बात रखते हुए यह भी कहा कि अब समय को परिवर्तित करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा समानता की बात कहने से नहीं करने से आएगी।
भिलाई। माइलस्टोन अकेडमी में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सेलीब्रेशन हुआ। इस अवसर पर अकेडमी में एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में अलग-अलग फील्ड से महिलाओं को आमंत्रित किया गया। वर्चुअल मंच पर आयोजित इस कार्यक्रम में 'महिलाओं के लिए बेहतर दुनिया किस प्रकार बनाई जाए' विषय पर चर्चा हुई। साथ की महिलाओं के अधिकारों पर पैनल डिस्कशन भी हुआ।
श्रीमती शुभम शुक्ला के मॉडरेशन में आयोजित इस वेबिनार में प्रतिभागियों ने कहा कि हमेशा महिलाएं ही त्याग क्यों करें। उसे भी अपना जीवन जीने और अपने सपनों को पूरा करने का हक है। महिलाएं हमेशा रूढ़ीवादी परंपराओं को क्यों निभाएं? वे भी खाना बनाने से लेकर जिम जाने तक सब कर सकती हैं।
वेबिनार में शामिल एक अन्य प्रतिभागी ने कहा कि केवल बहू ही सास-ससुर की सेवा क्यों करे। पूरा घर भी तो इस जिम्मेदारी को अपनाकर पूरी ईमानदारी से साथ निभा सकता है। महिलाओं को भी समानता का अधिकार है। वह भी अपने पति की तरह अपने माता-पिता की सेवा करने का हक रखती हैं।
वेबिनार में शामिल प्रतिभागी ने कहा कि हमेशा औलाद के रूप में लड़का ही क्यों चाहिए? लड़कियां भी माता-पिता का सहारा बन सकती हैं। आज वे और उनकी बहनें अपने माता-पिता की जिम्मेदारियां उठाने के साथ-साथ उनकी इच्छाएं भी पूरी कर रही हैं।
लड़कियों की सुरक्षा को लेकर जो डर है, वह हम उन पर हावी ना होने दें। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होकर पूरे दृढ़ विश्वास के साथ आगे बढ़ने में उनकी मदद करें। अगर दोनों नौकरी कर रहे हैं तो महिलाएं ही घर का काम क्यों करें? बेटा अपनी मां की तरह ही अपनी बीवी की बात क्यों ना माने?
इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए मनु सर ने कहा कि आगे बढ़ने के लिए महिलाओं के रास्ते में बहुत सी जिम्मेदारियां हैं जबकि पुरुषों का रास्ता साफ है। क्यों ना दोनों ही आधी-आधी जिम्मेदारियां उठा लें। सफलता दोनों ही पाएं। इस वेबिनार में कई पुरुष सदस्य भी शामिल हुए और अपनी बात रखी।
हमारे आसपास ही है महिला सशक्तिकरण
वेबिनार के अंत में माइलस्टोन अकेडमी की डायरेक्टर डॉ. ममता शुक्ला ने कहा की हम जिस नारी सशक्तिकरण को ढूंढ रहे हैं, वह तो हमारे आसपास ही है। बस जरूरत है उसे पहचानने की। हम अपनी क्षमता को स्वयं पहचान कर सशक्त हो सकते हैं। उन्होंने इन सभी मुद्दों पर अपनी बात रखते हुए यह भी कहा कि अब समय को परिवर्तित करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा समानता की बात कहने से नहीं करने से आएगी।
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