रायपुर। छत्तीसगढ़ में इन दिनों अलग तरह की राजनीति चल रही है। दरअसल, प्रदेश में 15 साल की भाजपा सरकार के तिलिस्म को तोड़कर कांग्रेस को सत्ता में लाने वाले सीएम भूपेश बघेल को पार्टी के ही कुछ नेता साइड करने की कोशिश में जुट गए हैं। सीएम को प्रदेश कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठकों तक में न्यौता नहीं जा रहा है। जबकि बघेल वो नेता हैं, जिन्होंने देशभर में भाजपाई हवा के बावजूद न केवल राज्य की सत्ता दिलाई, बल्कि बंपर सीटें भी जीतीं। आलम ये है कि भूपेश को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठकों में तवज्जो दी जा रही है, जबकि प्रदेश में दरकिनार किया जा रहा है। कई मौकों पर सरकार और संगठन अलग-अलग नजर आ रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि संगठन के कुछ नेताओं की इस हरकत से सीएम नाराज हैं और प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेता अपनी अतिमहत्वाकांक्षा के चलते संगठन और सरकार के बीच अंतर पैदा कर रहे हैं। फूल छाप कांग्रेस के ठप्पे से पार्टी को मुक्त कराने का झंडा उठाने वाले भूपेश को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी और तमाम तरह के आरोपों का सामना किया। जेल भी गए। कांग्रेस के जमीन से जुड़े नेताआंे की फेहरिश्त में सबसे पहले नंबर पर आने वाले भूपेश को स्थानीय नेता पीछे धकेलने की कोशिश में जुट गए हैं। आलम ये है कि भूपेश को प्रदेश कांग्रेस की जरूरी बैठकों से दूर रखने का प्रयास किया जा रहा है। बघेल न केवल सीएम हैं, बल्कि विधान सभा में विधायक दल के नेता भी हैं। ऐसे में संगठन की किसी भी गतिविधि में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। पहले तक संगठन की बैठक में विधायक दल के नेता को आमंत्रित किया जाता रहा है। खुद भूपेश भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहते हुए इस परंपरा का पालन करते रहे हैं। लेकिन अब स्थितियां बदल गईं हैं। संगठन की बैठकों को लेकर नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश की जा रही है।मजे की बात ये है कि जहां एक ओर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वे नेता जिनका खुद का जनाधार नहीं है, वे सीएम को कमजोर आंक रहे हैं, वहीं कांग्रेस वर्किंग कमेटी में उन्हें खासी तवज्जो मिल रही है। भूपेश को शनिवार को होने वाली बैठक में विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर बुलाया गया है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ही पाटी की आगे की रणनीति तय करती है। कांग्रेस का मतलब गांधी परिवार है और भूपेश बघेल गांधी परिवार के करीबी बन चुके हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि असम चुनाव के बाद भूपेश को पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश चुनाव का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। विरोधी यह कह सकते हैं कि असम में पार्टी को हार मिली, लेकिन वे इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि माइनस में चल रही पार्टी और नीचे जाने से बच गई। अब तक मिली जिम्मेदारियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अपनी राजनीतिक समझ के कारण प्रियंका गांधी, भूपेश बघेल को रणनीतिक सहयोगी के तौर पर देख रही हैं।ऐसे हालात में छत्तीसगढ़ में सीएम को दरकिनार करने वालों को बढ़ा नुकसान हो सकता है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी करने वाले नेताओं से सीएम नाराज हैं और संभव है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी में बड़ा फेरबदल हो जाए। सरकार और संगठन में दो फाड़ करने के चलते संभव है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को नुकसान हो जाए। क्योंकि संगठन को एकजुट रहने का दायित्व तो प्रदेश अध्यक्ष का ही है।(TNS)
रायपुर। छत्तीसगढ़ में इन दिनों अलग तरह की राजनीति चल रही है। दरअसल, प्रदेश में 15 साल की भाजपा सरकार के तिलिस्म को तोड़कर कांग्रेस को सत्ता में लाने वाले सीएम भूपेश बघेल को पार्टी के ही कुछ नेता साइड करने की कोशिश में जुट गए हैं। सीएम को प्रदेश कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठकों तक में न्यौता नहीं जा रहा है। जबकि बघेल वो नेता हैं, जिन्होंने देशभर में भाजपाई हवा के बावजूद न केवल राज्य की सत्ता दिलाई, बल्कि बंपर सीटें भी जीतीं। आलम ये है कि भूपेश को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठकों में तवज्जो दी जा रही है, जबकि प्रदेश में दरकिनार किया जा रहा है। कई मौकों पर सरकार और संगठन अलग-अलग नजर आ रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि संगठन के कुछ नेताओं की इस हरकत से सीएम नाराज हैं और प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेता अपनी अतिमहत्वाकांक्षा के चलते संगठन और सरकार के बीच अंतर पैदा कर रहे हैं। फूल छाप कांग्रेस के ठप्पे से पार्टी को मुक्त कराने का झंडा उठाने वाले भूपेश को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी और तमाम तरह के आरोपों का सामना किया। जेल भी गए। कांग्रेस के जमीन से जुड़े नेताआंे की फेहरिश्त में सबसे पहले नंबर पर आने वाले भूपेश को स्थानीय नेता पीछे धकेलने की कोशिश में जुट गए हैं। आलम ये है कि भूपेश को प्रदेश कांग्रेस की जरूरी बैठकों से दूर रखने का प्रयास किया जा रहा है। बघेल न केवल सीएम हैं, बल्कि विधान सभा में विधायक दल के नेता भी हैं। ऐसे में संगठन की किसी भी गतिविधि में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। पहले तक संगठन की बैठक में विधायक दल के नेता को आमंत्रित किया जाता रहा है। खुद भूपेश भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहते हुए इस परंपरा का पालन करते रहे हैं। लेकिन अब स्थितियां बदल गईं हैं। संगठन की बैठकों को लेकर नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश की जा रही है।
मजे की बात ये है कि जहां एक ओर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वे नेता जिनका खुद का जनाधार नहीं है, वे सीएम को कमजोर आंक रहे हैं, वहीं कांग्रेस वर्किंग कमेटी में उन्हें खासी तवज्जो मिल रही है। भूपेश को शनिवार को होने वाली बैठक में विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर बुलाया गया है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ही पाटी की आगे की रणनीति तय करती है। कांग्रेस का मतलब गांधी परिवार है और भूपेश बघेल गांधी परिवार के करीबी बन चुके हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि असम चुनाव के बाद भूपेश को पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश चुनाव का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। विरोधी यह कह सकते हैं कि असम में पार्टी को हार मिली, लेकिन वे इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि माइनस में चल रही पार्टी और नीचे जाने से बच गई। अब तक मिली जिम्मेदारियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अपनी राजनीतिक समझ के कारण प्रियंका गांधी, भूपेश बघेल को रणनीतिक सहयोगी के तौर पर देख रही हैं।
ऐसे हालात में छत्तीसगढ़ में सीएम को दरकिनार करने वालों को बढ़ा नुकसान हो सकता है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी करने वाले नेताओं से सीएम नाराज हैं और संभव है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी में बड़ा फेरबदल हो जाए। सरकार और संगठन में दो फाड़ करने के चलते संभव है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को नुकसान हो जाए। क्योंकि संगठन को एकजुट रहने का दायित्व तो प्रदेश अध्यक्ष का ही है।
(TNS)
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