सीपियॉं के विमोचन पर ख्यातिलब्ध कवि एवं साहित्यकारों ने रखे विचार

रायपुर। आनंद बहादुर की गज़लें साहित्य की जमीन पर प्रयोगवादी वृक्ष के समान हैं। उनकी गज़लों राजनीति पर बेबाक हमला भी करती हैं और प्रकृति की लोच-लचक और सादगी को भी महसूस कराती हैं। यह बातें प्रख्यात लेखक व कवि डॉ. आनंद शंकर बहादुर के गज़ल संग्रह 'सीपियाँ के ऑनलाइन विमोचन के मौके पर साहित्यकारों ने कहीं। नॉटनल के फेसबुक पेज पर लाइव प्रसारित विमोचन कार्यक्रम में देश के ख्यातिलब्ध कवि एवं साहित्यकारों ने गज़ल संग्रह सीपियाँ की आधुनिक काव्य में प्रासंगिता पर चर्चा की तथा सामाज में साहित्य की भूमिका को रेखांकित किया। कार्यक्रम की शुरुआत लेखक आनंद बहादुर ने अपनी गजलें सुनाकर की।


''पपीहा इस क़दर प्यासा कहाँ है।

वो प्यासा है, मगर मुझ सा कहाँ है।

मुखौटों के नगर में ढंूढ़ता हूं।

जो चेहरा था, मेरा चेहरा कहाँ है।


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता के रूप में कवि एवं साहित्यकार सत्यनारायण ने कहा कि आनंद बहादुर गजल को समर्पित कवि है। वे चुस्त और सलीके से गज़ल लिखते हैं और गज़ल कहते भी हैं। गजल बहुत नाजुक विधा है।मैं उनके रचना कर्म की प्रशंसा करता हूँ। वरिष्ठ साहित्यकार गौहर रजा ने कहा कि  मैं आनंद बहादुर को इस गज़ल संग्रह के लिए बधाई देता हूं। गज़ल का सफ़र लंबा सफ़र है। आनंद ने इसको नया आयाम दिया है। नए तरीके से परखा है। गज़ल में आज लगभग 52 बहरें हैं। लेकिन 7 बहरें ही प्रमुखता से उपयोग में लाई जाती हैं। गज़ल के अंदर खूबसूरती होती है। तकनीक और ख़्याल का ध्यान रखते हुए गज़ल का लेखन करें तो बेहतर होगा। आनंद साहब ने अपनी गज़लों में बड़ी हिम्मत के साथ रदीफ़ और काफिया का इस्तेमाल किया है। मिले जुले अल्फ़ाज़ों का उपयोग किया है, जो दिल को तसल्ली देते हैं। 


जया जादवानी ने कहा कि कहते हैं किताब तन्हा भी करती है और तन्हाई से भी बचाती है। गज़ल शुरू से लोकप्रिय विधा रही है। गज़ल पढ़ने और सुनने में जितनी सरल दिखती है। लिखने में उतनी ही कठिन है। आनंद बहादुर के गज़ल संग्रह सीपियाँ बहुत बढ़िया कृति है। उन्होंने सरल भाषा का प्रयोग किया है। बातों को सरलता से समझाने का प्रयास किया है। प्रभुनारायण वर्मा ने कहा कि शायर के लिए तो पूरी दुनिया है। आनंद बहादुर एक आधुनिक शायर हैं। गज़ल बहुत नाजुक विधा है। आनंद बहादुर जोखिम उठाते हुए शायरी करते हैं। आनंद की शायरी में पारंपरिक चीज़ बहुत कम है। आनंद बहादुर सुनने व सुनाने वाले शायर ही नहीं पढ़ने वाले शायर भी हैं।


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